आजादी का यह दिन कई पुराने अध्यायों का स्मरण करता है , वो अध्याय जो आमतौर पर न खोले जाते हैं न ही इतिहास के पन्नों में अपनी मौजूदगी दर्ज करा पाते हैं। देश को लेकर कितने कुर्बान हुए कितना ना चाहते हुए भी मारे गए और ना जाने कितने दंगों की भेट चढ़ गए।
‘ वो नाम न शहीदों में गिने जाते हैं न ही सेनानियों में ना , वो घटनाएं न जंग में गिनी जाती हैं न ही संघर्ष में और आज इस स्वतंत्र दिवस के अवसर पर हम उन अध्यायों पर पड़ी धूल साफ़ करकर एक बार बार फिर15 अगस्त 1947 की स्मृतियों को आपके सामने रखेंगे।
ये तो आप सब जानते हैं की देश की आज़ादी के लिए कइयों के खून बहे , असंख्यों ने कुर्बानी दी कुछ याद रखे गए कुछ भुला दिए गए। आज पन्दरह अगस्त के दिन को एक जश्न के रूप में मानाया जाता है , लेकिन 15 अगस्त 75 साल पहले यानी जिस दिन भारत सच ,में आज़ाद हुआ था। उस दिन माहौल ऐसा नहीं था।
देश के एक हिस्से में जश्न मन रहा था तो दुसरे हिस्से में मातम , एक तरफ झंडा लहरा रहा था तो दूसरी तरफ तलवारें एक तरफ फूलों से स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को शुभकामनाएं मिल रही थी तो दूसरी तरफ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का कलेजा वेदना से फट रहा था।
हर तरफ हाहाकार, चीख, यहां आज़ादी का रंग तिरंगा नहीं लाल था। 14 अगस्त की वो काली रात जब सब लोग घरों में सो रहे थे और ये उम्मीद कर रहे थे की सुबह स्वतंत्रता की खुशबू और आजादी लेकर आ रही है।
हजारों साल से जकड़ी हुए गुलामी की बेड़ियां अब टूट रही थी। अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी से अब देश को आजादी मिल रही थी। मगर इस सिक्के का दूसरा पहलू भी था। आने वाली आजादी की सुबह ना जाने कितनी बेकसूर हो कि जान लेने वाली थी।
आजादी के दिन जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आजाद भारत को संबोधित किया था लेकिन उस वक्त वहां महात्मा गांधी मौजूद नहीं थे। जिन्हें जनता उस वक्त बड़ी ही बेसब्री से खोज रही थी और उनका इंतजार कर रही थी। 14 अगस्त की रात को आजादी का जश्न शुरू हुआ था। जिसके औपचारिक शुरुआत संसद भवन से हुई थी।
देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अच्छे से जान रहे थे कि यह जो भारत की आजादी हो रही है। वह टुकड़ों टुकड़ों में हो रहा है। लोगों के आक्रोश और सांप्रदायिक दंगों को शांत कराने के लिए महात्मा गांधी ने अनशन शुरू किया। गांधीजी प्रारंभ से अहिंसा और एकता पर बल देते थे। देश के विभाजन ने (भारत और पाकिस्तान)ने अहिंसा पर हिंसा के पल्ले को भारी कर दिया।
इस निर्णय के बाद प्रत्येक बड़े नगर जैसे बंगाल बिहार कोलकाता पंजाब आदि में सांप्रदायिक दंगे शुरू हुए। जिसके कारण कत्लेआम हुआ। एक विभाजन की लकीर ने लोगों की अपने बसे बसाई घर को छोड़ने के लिए विवश कर दिया था। कुछ महीनों पहले जो देश वासी हिंदू मुस्लिम भाई भाई का नारा लगाते थे।
आज एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे। बंटवारे के इस विस्पतान में इंसानियत पूरी तरीके से खत्म हो गई थी। सांप्रदायिक दंगों से हर रोज तकरीबन 100 से अधिक लोग अपनी जान गवा रहे थे और बंटवारे की कीमत चुका रहे थे।
इस पल को आज महसूस करने पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि देश के आजाद होने के साथ-साथ हिंसा का दर्दनाक मंजर देखने को भी मिला। इतिहास के पन्नों को हैरान कर देने वाली यह घटना भूले से भी कोई भूल ना सकता।
आजादी का मंजर ना जाने कितनों की कफन का मंजर बन गया। बहकावे की शिकार हुए हिंदू मुस्लिमों ने अंग्रेज हुकूमत को देश से जाते-जाते यह मौका दे दिया कि वह देश को दो लकीरों में बाट गए। 100 वर्षों से देश में राज कर रहे अंग्रेजों ने देश को छोड़ा तो उसे विभाजित करके ही छोड़ा अंग्रेजी हुकूमत द्वितीय विश्व युद्ध के हार के बाद यह भली-भांति जान चुकी थी कि अब भारत में शासन करना आसान न होगा।
अंग्रेजी हुकूमत ने देश को स्वतंत्र कराने का फैसला भी लिया। इस फैसले ने भारत को आजादी तो दी पर सोने की चिड़िया कहीं जाने वाले भारत की सरजमी कोदो हिस्सों में बिखेर दिया 15 अगस्त 1947 की सुबह के दृश्य का जिक्र माउंटबेटन ने अपनी एक रिपोर्ट में किया। जिसे उन्होंने ब्रिटिश क्राउन मे सौंपा था।
उसमें उन्होंने बताया कि जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु जब झंडा फहरा रहे थे। उसी समय खुले आसमान में ना जाने कैसे इंद्रधनुष नजर आया और उसे देख जमा भीड़ हैरान और अचंभित रह गई।
आजादी का यह दिन इस बात का गवाह है कि कितने त्याग के बाद आज हम स्वतंत्र रूप से अपना जीवन जी रहे हैं।