जिंदगी में चुनौती आने पर लोग हैरान हो जाते हैं, पर जीवन में जब चुनौती आती है तो अपने साथ अवसर भी लाती है। लोग अगर मुश्किल वक्त में थोड़ा धैर्य रखें तो मुश्किलें आसान हो ही जाती हैं, इस बात के जीते जागते उदहारण हैं ओडिशा के विभु साहू। विभु ने अपने मुश्किल समय में अपने धैर्य व सूझ बुझ से आपदा में अवसर को ढूंढ निकला था, और आज लाखों की कमाई कर रहे हैं।
दरअसल, मामला ओडिशा के कालाहांडी का है, जहां प्रत्येक वर्ष 50 लाख टन चावल का उत्पादन किया जाता है। कालाहांडी प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक है, और यहां दर्ज़नो पैरा ब्लोइंग कंपनियां हैं जिनसे भारी मात्रा में भूसा निकलता है। इन भुसियों को खुले में जला दिया जाता है, जिससे भारी मात्रा में प्रदुषण होता है। कालाहांडी के विभु साहू ने कुछ ऐसा किया की प्रदूषण से बचाने के साथ-साथ लाखों की कमाई भी करने लगे हैं।
विभू कैसे बने शिक्षक से व्यवसायी
कालाहांडी प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक केंद्र है, जहां प्रत्येक वर्ष लाखों टन चावल का उत्पादन किया जाता है। यहां के विभू साहू पेशे से एक शिक्षक थे जिन्होंने 2007 में अपनी नौकरी छोड़ खेती शुरू कर अपनी आजीविका चलने लगे। साल 2014 में विभु ने एक चावल मिल स्टार्ट किया, और आज हरिप्रिया एग्रो इंडस्ट्रीज़ के मालिक हैं। विभु के मिल से लगभग 3 टन भूसा प्रत्येक दिन निकलता था, इस भूसे को खुले जला दिया जाता था जिससे आम लोगों को बहोत तकलीफ होती थी क्यूंकि इसे जलाने पर भरी मात्रा में प्रदूषण होता था जो लोगों के सेहत पर बुरा प्रभाव दाल रहा था।
भूसा है स्टील फैक्ट्री के लिए उपयोगी
कालाहांडी के लोग प्रदूषण से परेशान थे, इस प्रदूषण का मुख्य कारण भूसा जलने से निकलने वाला धुआं और राख है। इस मामले के निवारण के लिए विभू ने बहोत प्रयास किये जिससे उनको ये पता चला की चावल की भूसी का इस्तेमाल स्टील कंपनियों में किया जाता है। चावल की भूसी को स्टील प्लांट में थर्मल इंसुलेटर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, इसमें 85% सिलिका होती है. इसलिए इसका इस्तेमाल स्टील फैक्टरी में बहोत उपयोगी होता है। जिसके बाद विभू ने चावल के भूसे को स्टील फैक्ट्री में निर्यात करने का सोचा।
भूसा कैसे बना सोना
चावल के भूसे की उपयोगिता स्टील फैक्ट्री में बहोत लाभदायक है, इस खबर से विभू बहोत उत्सुक थे उनको लगा की अब लोगों को प्रदूषण से बचाया जा सकता है। इसी क्रम में विभू ने अपने रिसर्च के दौरान सैंपल के साथ एक मित्र के स्टील फैक्ट्री का दौरा किया, और उनके समक्ष अपने प्रस्ताव रखे जिसे पसंद किया गया और कंपनी ने विभू से राख को पाउडर के रूप में मांगा पर विभु ने वायु प्रदूषण बढ़ने का हवाला देते हुए राख को छोटी गोलियों (पैलेट) के रूप में देने को कहा।
शुरुआत में विभू को बहोत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्यूंकि उन्हे भूंसे से कैसे पैलेट बनाना है नहीं आता था। विभू ने इसके लिए बहोत प्रयास किए पर सफलता नहीं मिली ऐसे में विभू ने लगभग उम्मीद छोड़ दी थी फिर उनके एक कर्मचारी ने विभू से कुछ वक्त मांगा और फिर अपने गांव से 4 और लोगों को लाया फिर उन सब ने मिलकर जिस तकनिकी का प्रयोग किया उससे पैलेट बनाने में बहोत मदद मिली पर विभू के रस्ते इतने आसान नहीं थे , पैलेट किस अनुपात में बनाना है इसमें भी लगभग एक सप्ताह का समय लग गया।
सबसे पहले सऊदी को किया निर्यात
विभू ने 2019 में अपने प्रोडक्ट चावल की भूसी से बने पैलेट की पहली खेप सऊदी अरब को निर्यात किया था और इस साल विभू ने 100 टन भूसे के पैलेट को निर्यात कर 20 लाख की कमाई की थी। विभू ने अपने कठिन समय में भी सूझ-बुझ से कार्य लेते हुए लाखों की कमाई की और लोगों को भी प्रदूषण से बचाने का कार्य किया। आज हम अपने जीवन में छोटी छोटी परेशानियों से डर कर बैठ जाते हैं पर ऐसे में विभू की ये कहानी कैसे उन्होंने आपदा को अवसर में बदल दिया बहोत प्रेरणादायक है।