कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर उत्सव मनाया जाता है। छठ पूजा हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीने में मनाई जाती है और यह पर्व दिवाली के 6 वें दिन आती है। छठ पूजा की पूर्व संध्या पर श्रद्धालु घाटों ,नदियों तालाबों में इकठा होते है यह त्यौहार भगवान सूर्य के प्रति भक्ति व्यक्त करने के लिए और पुत्र की दीर्घ आयु के लिए छठ पूजा का उपवास करती है।
हम सभी जानते हैं कि सूर्य ऊर्जा के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है, इसलिए लोग भगवान सूर्य की पूजा करते हैं। इस अवसर को मनाने के पीछे अलग-अलग कहानियां हैं। लेकिन उन सभी का उद्देश्य एक ही है। लोग पारंपरिक गीत गाते हैं, महा प्रसाद बनाते हैं और भगवान सूर्य को शाम और सुबह का अर्घ्य देकर अपना उपवास पूरा करते हैं। सभी परिवार के सदस्य अर्घ्य में भाग लेते हैं और सूर्य देव के प्रति अपनी भक्ति दिखाते हैं।
छठ के पहले दिन को “नहाय खाय” कहा जाता है, यह वह दिन है जब भक्त नदियों में पवित्र स्नान करते हैं। छठ पूजा के दूसरे दिन को “खरना” के रूप में जाना जाता है, इस दिन भक्त “मीठी खीर” पकाते हैं और इसे प्रसाद के रूप में लेते हैं। छठ पूजा के तीसरे दिन को “संध्या अर्घ्य” कहा जाता है, इस दिन लोग डूबते सूर्य को “अर्घ्य” देते हैं। चौथे दिन को “उषा अर्घ्य” कहा जाता है, इस दिन लोग उगते सूरज को “अर्घ्य” देते हैं और अपना उपवास पूरा करते हैं।यह त्योहार उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय है, लोग गाते हैं और अपने दिन का आनंद लेते हैं और समूहों में इस व्रत को करते हैं। महा प्रसाद का होना बहुत शुभ होता है इसलिए लोग अपने प्रियजनों को प्रसाद बांटते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार प्रियवंद नाम का एक राजा था। जिसको लम्बे समय से संतान प्राप्ति नहीं हो रही था। राजा मन ही मन चिंतित होने लगे। एक दिन राजा महर्षि कश्यप के पास अपनी इस पीड़ा को लेकर पंहुचा और महर्षि कश्यप से प्रार्थना करने लगा की वो उसकी इस समस्या का हल निकाले तब महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया उस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालनी को दी गई। कुछ समय बाद राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति भी हुई, लेकिन उनका पुत्र मरा हुआ जन्मा। जिसके बाद राजा मृत पुत्र के शव को लेकर शमशान पंहुचा और पुत्र वियोग में अपने प्राण त्यागने की सोची, तभी वहां उसी वक्त ब्रम्हा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई। उन्होंने राजा प्रियवद से कहा ,मैं सृष्टिकी मूल प्रवत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूँ तुम मेरी पूजा करो माता षष्ठी के कहने पर राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया इस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी इसके फलस्वरूप राजा को पुत्र प्राप्त हुआ।तभी से पुत्र प्राप्ति और पुत्र के दीर्घ आयु के लिए छठ पर्व की शुरुवात हुई।