कथा/कहानी
| On
April 14, 2022 2:40 pm

जानें क्यों बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने बेटे यशवंत को भूखे पेट भेजा था मुम्बई

By Shikha Pandey
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भारतीय संविधान के जनक कहे जानें वालें बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल को को हर वर्ष मनायी जाती है। इस दौरान देश में सरकारी दफ्तरों में और आम जनता अपने-अपने तरीके से अंबेडकर जयंती मनाती है। बाबा साहेब अंबेडकर ने समाज में समय के साथ आई अमानवीय कुरीतियों जैसे छुआछूत,भेदभाव ,तिरस्कार आदि को स्वयं भोगा था परन्तु धैर्य की मूर्ति बाबा साहब ने कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लिया ,बल्कि समाज के लिए एवं वंचित वर्ग को समाज में प्रतिष्ठा दिलवाने के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया।

बाबा साहेब अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था उनका मूल नाम भीमराव था। अंबेडकर के पिता रामजी वल्द मालोजी सकपाल महू में ही मेजर सूबेदार थे। अंबेडकर का परिवार मराठी था और वो मूल रूप से महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के अंबडवेकर गांव ताल्लुक रखते थे। मां का नाम भीमाबाई सकपाल था।अंबेडकर के पिता कबीर पंथी थे।महार जाति के होने की वजह से अंबेडकर के साथ बचपन से ही भेदभाव शुरू हो गया था।

यह आज़ादी के पहले की घटना है 1943 में बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर को वाइसराय काउंसिल में शामिल किया गया और उन्हें श्रम मंत्री बना दिया गया। इसके साथ ही लोक निर्माण विभाग (PWD) भी उन्ही के पास था। इस विभाग का बजट करोड़ों में था और ठेकेदारों में इसका ठेका लेने की होड़ लगी रहती थी।

 

इसी लालच में दिल्ली के एक बड़े ठेकेदार ने अपने पुत्र को बाबासाहेब के पुत्र यशवंत राव के पास भेजा और बाबासाहेब के माध्यम से ठेका दिलवाने पर अपना पार्टनर बनाने और 25-50% तक का कमीशन देने का प्रस्ताव दिया। यशवंत राव उसके झांसे में आ गए और अपने पिता को यह सन्देश देने पहुँच गए।

जैसे ही बाबासाहेब ने ये बात सुनी वो आग-बबूला हो गए.उन्होंने कहा “मैं यहाँ पर केवल समाज के उद्धार का ध्येय को लेकर आया हूँ। अपनी संतान को पालने नहीं आया हूँ। ऐसे लोभ-लालच मुझे मेरे ध्येय से डिगा नहीं सकते और उसी रात यशवंत को भूखे पेट मुम्बई वापस भेज दिया।

 

This post was published on April 14, 2022 2:40 pm

Shikha Pandey

Content Writer