करवा चौथ उत्तर भारत के खास त्यौहारों में से एक है। जो विवाहित महिलाओं के लिए है। करवा चौथ कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और शाम को चंद्रमा को देखकर ही व्रत खोला जाता है। ये व्रत उत्तर भारत जैसे-पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार में ही किया जाता है। इस दिन भगवान गणेश और शिव-पार्वतीजी के साथ करवा माता की पूजा खासतौर से की जाती है।
पहली बार करवा चौथ रखने वाली महिलाएं इस बार से शुरुआत न करें-
इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव, माता पार्वती और चंद्रदेव की पूजा करती हैं। इस साल करवा चौथ पर शुक्र अस्त होने का प्रभाव है। इसलिए कहा जा रहा है कि पहली बार करवा चौथ रखने वाली महिलाएं इस बार से शुरुआत न करें।इस साल करवा चौथ पर काफी शुभ संयोग बन रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ सिद्धि योग बन रहा है।
करवा चौथ का इतिहास और कथा –
यूं तो करवा चौथ की कई कथाएं प्रचलित हैं लेकिन ऐसी मान्यता है कि ये परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। कहा जाता है कि देवताओं और दानवों के युद्ध के दौरान देवों को विजयी बनाने के लिए ब्रह्मा जी ने देवों की पत्नियों को व्रत रखने का सुझााव दिया था। जिसे स्वीकार करते हुए इंद्राणी ने इंद्र के लिए और अन्य देवताआें की पत्नियों ने अपने पतियों के लिए निराहार, निर्जल व्रत किया। नतीजा ये रहा कि युद्ध में सभी देव विजयी हुए आैर इसके बाद ही सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला। उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी और आकाश में चंद्रमा निकल आया था। मान्यता है कि तभी से करवा चौथ का व्रत शुरू हुआ। ये भी कहा जाता है कि शिव जी को प्राप्त करने के लिए देवी पार्वती ने भी इस व्रत को किया था। महाभारत काल में भी इस व्रत का जिक्र है आैर पता चलता है कि गांधारी ने धृतराष्ट्र और कुंती ने पाण्डु के लिए इस व्रत को किया था।