भारत आज अगर आज़ाद है और हम चैन की सांस ले पा रहे तो इसके पीछे लाखों कुर्बानिया देश के लिए कुर्बान हुई है। भारत के इतिहास में आज का दिन कोई भी भारतीय भूले से भी नहीं भूल सकता। 13 अप्रैल 1919 का वो काला दिन जब अंग्रेजी सेनाओं की एक टुकड़ी ने निहत्थे भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलाकर बड़ी संख्या में नरसंहार किया था। इस हत्यारी सेना की टुकड़ी का नेतृत्व ब्रिटिश शासन के अत्याचारी जनरल डायर ने किया था। जालियांवाला बाग में उस दिन सभी प्रदर्शनकारी रोलट एक्ट का विरोध कर रहे थे। वह रविवार का दिन था और आस-पास के गांवों से आए भारी सख्या में किसान हिंदुओं तथा सिक्खों का उत्सव बैसाखी मनाने अमृतसर आए थे।
जब रौलट एक्ट काले कानून का विरोध किया महात्मा गाँधी ने-
8 मार्च 1919 को रौलट एक्ट लागू किया गया था। यह एक्ट ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत के क्रांतिकारी को कुचलने के लिए ‘ सर किडनी रॉलेक्ट’ की कमेटी नियुक्त की गई थी। 1918 मैं कमिटी ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। 1919 फरवरी में कमेटी द्वारा सुझाए गए आधार पर केंद्रीय विधान मंडल में दो विधायक लाए गए थे। महात्मा गाँधी ने इस रौलट एक्ट जैसे काले कानून का विरोध भी किया था।
बैसाखी का वो दिन जब चली 1,650 गोलिया-
बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया। उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थीं। नेताओं ने सैनिकों को देखा, तो उन्होंने वहां मौजूद लोगों से शांत बैठे रहने के लिए कहा। लेकिन अत्याचारी जनरल डायर ने निहत्थे और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों को गोलियों से भून दिया गया।
घटना की याद में बना स्मारक-
इस स्मारक में लौ के रूप में एक मीनार बनाई गई है जहाँ शहीदों के नाम अंकित हैं। वह कुआँ भी मौजूद हैं जिसमें लोग गोलीबारी से बचने के लिए कूद गए थे।
दीवारों पर गोलियों के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। इस दुखद घटना के लिए स्मारक बनाने हेतु आम जनता से चंदा इकट्ठा करके इस जमीन के मालिकों से करीब 5 लाख 65 हजार रुपए में इसे खरीदा गया था। इसी घटना की याद में यहाँ पर स्मारक बना हुआ है।