बीते दिनों हमने आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया है, भारत की इस आज़ादी के पीछे बहोत से महापुरषों का प्रयास व कड़ी मेहनत है। आज़ाद भारत के सबसे बड़े नायक हैं महात्मा गांधी, जिन्हे प्यार से हम-सब बापू कह कर सम्बोधित करते हैं। गाँधी जी के जीवन में बहोत मुश्किलें आईं पर उन्होने सत्य का दमन हमेशा थामे रखा, देश व देशवाशियों के लिए बापू ने बहोत से त्याग किए और सबको अहिंसा का पाठ पढ़ाया।
बापू एक सफल वक्ता थे जब वो सम्बोधन के लिए खड़े होते थे तो सब टकटकी लगाकर उनको सुनते थे और उनके एक आह्वाहन पर उनके पीछे निकल पड़ते थे। उन्होंने लोगों के दिल में ये स्थान खुद बनाया था, जब लोग उनके पास किसी सुझाव के लिए आते थे तो गाँधी जी पहले खुद उस पर पालन करते फिर दूसरे को बताते थे। गाँधी जी के जीवन की बहोत सी कथाएं हैं जिनसे लोग प्रेरणा लेते हैं, और ये सब मिलकर बापू को महात्मा बनती हैं।
सत्य और अहिंसा को बनाया हथियार
गाँधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था, और इसी दिन देश भर में गाँधी जी की जयंती मानते हैं। इस दिन का उत्सव सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत की आज़ादी में बापू का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, देश में आज़ादी की जो अलख बापू ने जलाई थी वैसा कोई नहीं कर पाया था, बापू के इशारे पर देश भर में अंग्रेज़ो के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया था। बापू को महात्मा ऐसे ही नहीं कहा गया है। क्यूंकि देश की आज़ादी के लिए सत्य और अहिंसा को भी हथियार बनाया जा सकता है, ये बात बापू ने दुनिया को सिखलाई। बापू के विचारों से देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित होती है, देश ही नहीं दुनिया भर के लोग आज बापू के विचारों को फॉलो करते हैं।
झूठ का त्याग कर बापू बने सत्यवादी
बापू एक सत्यवादी पुरुष थे उन्होने झूठ का त्याग किया था इस दिशा में बहोत सी कहानियां हैं। बापू ने अपने जीवनकाल में बहोत से सत्याग्रह किए हैं, लोगों के बीच उनके खाने-पिने को लेकर पसंद और नापसंद की बहोत सी चर्चाए हैं। कहा जाता है की बापू को एक ज़माने में गुड़ खाना बहोत पसंद था, पर उन्होंने बाद में घुड़ खाना बंद कर दिया था। बापू की एक ऐसी ही कहानी आज आपको बताते हैं…
क्यों बापू ने त्यागा पसंदीदा गुड़
बापू के जीवन पर बहोत सी किताबें लिखी गई हैं जिनमे से सुबोध पब्लिकेशन की एक किताब ‘ प्रेरक कथाएं ‘ है, जिनमे बापू के गुड़ त्यागने की कथा लिखी है।
बापू के पास एक बार एक औरत अपने बच्चे के साथ आई, वो औरत अपने बच्चे से बहोत नाराज़ थी. उसने बापू से कहा की आपकी बात सभी सुनते हैं. ये मेरा बच्चा है जो बहोत ज़्यादा गुड़ खता है. इसके दान्त ख़राब हो जायेंगे आप इसको मना कीजिए ये गुड़ खाना छोड़ दे।
बापू ने उस औरत की बात सुनी और उसे 1 हफ्ते बाद बुलाया। वो औरत एक हफ्ते बाद फिर बापू के पास आयी तो उन्होंने फिर उसे एक हफ्ते बाद आने को कहा. ये सिलसिला 4 हफ़्तों तक चला. फिर चौथे हफ्ते में बापू ने उस बच्चे को अपने पास बैठाया और उसे समझाने लगे. उन्होंने बच्चे से कहा की वो गुड़ खाना छोड़ दे नहीं तो उसका दांत ख़राब हो जायेगा। फिर उस औरत से कहा की इसे ले जाओ अब बच्चा गुड़ नहीं खायेगा।
उस महिला को बापू पर गुस्सा आया उसने उनसे कहा की इतनी ही बात कहनी थी तो हमें 4 हफ़्तों तक क्यों दौड़ाया। बापू ने फिर उस औरत को बताया की जब तुम बच्चे को लेकर मेरे पास आई थी तब मै खुद गुड़ बहोत खता था इसे छोड़ने में हमें 4 हफ्ते लग गए। बापू ने बताया की मै उस व्यवहार को किसी और से पालन करने को कैसे कह सकता हूं जिस व्यवहार का पालन मै खुद नहीं करता।
दोस्तों बापू की यही बातें बापू को महात्मा बनती हैं। आज हम सब बापू की कही बातों को याद तो कतरे हैं, पर बापू के बताए उन राहों पर नहीं चलते। बापू की बातें अब महज किताबों तक की सिमित रह गई हैं, हम उसे असल जीवन में इस्तेमाल नहीं करते। अगर हम बापू की कही बातों का इस्तेमाल अपनी असल ज़िन्दगी में करना शुरू कर दें तो जीवन बहोत ही सुदृढ़ हो जायेगा। हम सब को बापू की कही बातों का मान रखना चाहिए और अपने जीवन ले लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।