शिक्षा
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February 20, 2023 7:20 pm

उर्दू के मशहूर लेखक अशअर नजमी पर लगा चोरी का आरोप!

By Mohd Badruzzama Siddiqui
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‘उस ने कहा था’ चंद्रधर शर्मा गुलेरी की मशहूर कहानी नहीं, बल्कि अशअर नज्मी का उर्दू नॉवल है —जो अब हिंदी में भी उपलब्ध है। हिंदी में इसका अनुवाद किया ज़मान तारिक़ ने।

रेख़्ता पब्लिकेशन से प्रकाशित ये उपन्यास LGBTQ समुदाय पर केन्द्रित है। ‘LGBTQ’ उर्दू साहित्य के हिसाब से थोड़ा नया सबजेक्ट है, इसलिए तीन साल पहले जब ये नॉवल प्रकशित हुआ तो इसकी ख़ूब चर्चा हुई। …और इस पर उर्दू साहित्य के कई महत्वपूर्ण लोगों ने अपने विचार भी रखे। तीन साल बाद ये नॉवल अब फिर से चर्चा में है। क्यों? आइए जानते हैं।

सबसे पहले अशअर नज्मी को जान लीजिए. अशअर नज्मी बीते कई सालों से लगातार ‘इस्बात’ नाम से उर्दू की तिमाही पत्रिका निकालते हैं. इस पत्रिका के संपादक/प्रकाशक/प्रबंधक सब वही हैं. इस पत्रिका के कई अंक अपने-अपने समय में बहुत ही अहम माने जाते रहे हैं। और विवादित भी। कई साहित्यिक मुद्दों पर प्रासंगिक इन अंकों में एक अंक साहित्यिक चोरी पर भी था। जिसमें उर्दू के कई बड़े लेखकों की चोरी का पर्दाफाश किया गया था। अब विडंबना ये है कि साहित्यिक चोरी पर अपनी पत्रिका पर अंक निकालने वाले अशअर नज्मी ख़ुद सवालों के घेरे में हैं। उनके उपन्यास ‘उसने कहा था’ पर ही चोरी के इल्ज़ाम लग रहे हैं।

आइए समझते हैं पूरा वाक़या

तो मामला ये है कि बीते हफ़्ते हाशिर नाम के फेसबुक यूज़र ने अपनी फ़ेसबुक वॉल पर कुछ स्क्रीनशॉट शेयर किए। स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए उन्होंने लिखा ”दो रोज़ पहले हमारे एक दोस्त हमज़ा ने हमारा ध्यान अशअर नजमी के नॉवल ‘उसने कहा था’ की ओर आकर्षित किया।

उन्होंन बताया कि ”इस उपन्यास में लीना हाशिर का लिखा ‘ख़्वाजासरा वाला मशहूर-ए-आलम ख़त’ को पूरा नक़ल कर लिया गया है।” बता दें लीना उर्दू की मशहूर कहानीकार हैं।

हाशिर ने आगे लिखा कि ‘पहले तो उनको इस पर यक़ीन नहीं हुआ, इसलिए तसल्ली के लिए उन्होंने अशअर नजमी का नॉवल मंगवा लिया। नॉवल खोला तो हमज़ा का दावा बिल्कुल सच निकला।’

जब हम दोनों तहरीरों को सामने रखते हैं तो नॉवेल का चैप्टर नंबर 9, जिस जगह रंगीली का किरदार अपनी आप-बीती सुनाना शुरू करता है और लीना हाशिर का ‘ख़्वाजासरा वाला ख़त’ बिल्कुल एक जैसा है। माने पूरा कॉपी है। कुछ मामूली बदलाव को छोड़ दें तो दोनों में कोई फ़र्क़ नहीं। कुछ एडिटिंग, जैसे उन्होंने ‘अल्लाह की रहमत’ वाले वाक्य में ‘अतिथि देव भव:’ में बदल दिया। ‘अमजद’ की जगह ‘रंगीली’ कर दिया। क्योंकि रंगीली और अमजद का कल्चरल बैक-ग्राउंड अलग है इसलिए उन्होंने बीच की दो लाइनों—जहाँ ईद का ज़िक्र है—हटा दिया। यानी ‘मीर इतने भी सादा नहीं है’

चलिए छोड़िए… गुनाह-सवाब, अच्छा-बुरा सब बहस की बातें। साहित्यिक-चोरी भी ठीक। …लेकिन लेखक सा’ब को कम से कम अब अपनी मौलिकता और महानता का स्तुतिगान तो बंद कर देना चाहिए। है कि नहीं?

खैर, इस पोस्ट और स्क्रीनशॉट के बाद फ़ेसबुक पर बवाल मचना शुरू गया। काफ़ी कुछ लिखा जाने लगा। थोड़ी देर बाद अशअर नजमी भी सफ़ाई देने के लिए इस विवाद में कूदे।

उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट से एक पोस्ट किया। उन्होंने लिखा ‘दोस्तो, मेरा उपन्यास तीन साल पहले आया था और लीना हाशिर की किताब ‘धनक का आठवाँ रंग’ दो महीने पहले आई थी—जिसमें ‘ख़्वाजासरा का ख़त’ भी शामिल है, अब आप ख़ुद तय करें कि किसने किस की चोरी की है!’

इस पोस्ट के कुछ देर बाद फेसबुक पर धड़ाधड़ स्क्रीनशॉट और लिंक तैरने लगे। सभी की कुल जमा कहानी ये कि ये मज़मून (मरने वाले ख़्वाजासरा का ख़त अपनी माँ के नाम) अशअर नजमी के नॉवल ‘उसने कहा था’ से तीन साल पहले यानी अब से 6 साल पहले प्रकाशित हुआ था। बल्कि उससे भी पहले एक यूट्यूब चैनल ने इस लेख/मज़मून को अपने चैनल पर पब्लिश किया था—जिसे लगभग तेरह-चौदह लाख बार देखा जा चुका है।

बस फिर क्या था! अशअर नजमी ने फ़ौरन अपनी पोस्ट डिलीट कर दी। इधर पोस्ट डिलीट हुई और लोगों का शक यक़ीन में बदलने लगा। वहीं, हाशिर के पोस्ट के कमेंट बॉक्स में अशअर नजमी से माफ़ी मांगने की बात होने लगी।

इन सब के बीच अशअर नजमी ने ‘मैच चल रहा है’ टाइटल से एक और पोस्ट लगाई। पोस्ट में उन्होंने कुछ गालियाँ बकने के बाद दावा किया कि ‘जल्द ही वह दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे। लोग उत्सुकता से सुबूत का इंतजार करने लगे। दो दिन बाद यानी बीते शनिवार की रात को अशअर नजमी साहब की एक लंबी पोस्ट आई—जिसमें कुछ स्क्रीनशॉट भी अटैच थे। इन स्क्रीनशॉट्स पर लीना हाशिर वाले मज़मून से एक साल पहले की तारीख़ लिखी हुई थी। इसके साथ ही उन्होंने एक दावा भी किया कि ये स्क्रीनशॉट हमारे एक शुभचिंतक ने ले लिए थे। लोगों ने उस पोस्ट की लिंक की मांग की—जिसके स्क्रीनशॉट अशअर साहब ने लगाए थे। हालांकि अशअर साहब ने अपनी पोस्ट में पहले ही कह दिया था कि फ्ऱी-थिंकर नाम के एक फ़ेसबुक ग्रुप में—जहाँ मज़मून पब्लिश किया गया था, उसे कई बार डीलीट किया जा चुका है। उसका लिंक अब मौजूद नहीं है।

दूसरी तरफ़, हाशिर ने दावा किया कि ये स्क्रीनशॉट फोटोशॉप्ड हैं… और तो और घटिया फोटोशॉप हैं। दुसरे फ़ेसबुक यूज़र उबैद ने फ़ौरन अशअर नजमी साहब के स्क्रीनशॉट को फोटोशॉप की मदद से तारीख बदल कर ‘1947’ कर दिया। स्क्रीनशॉट दिखने में अशअर नजमी के स्क्रीनशॉट जैसा ही ओरिजिनल और एकदम ताज़ा लग रहा था। हाशिर और उनके अलावा भी कई लोगों ने इन स्क्रीनशॉट्स में कुछ तकनीकी ख़ामियाँ बताईं। लोगों ने 2015 और आज के फ़ेसबुक पोस्ट की तुलना भी की और दूध का दूध पानी का पानी हो गया। वो स्क्रीनशॉट आज के फेसबुक के इंटरफ़ेस के मुताबिक़ निकले। यानी ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ का दावा करने के बाद स्क्रीनशॉट तैयार किया गया और मार्केट में परोसा गया। ख़ैर, स्क्रीनशॉट ग़लत साबित हुए और अशअर नजमी एक्सपोज़ हो गए।

ब-हर-हाल तमाम बहसों, आरोपों और सफाइयों के बाद ये साबित हो गया कि ‘उसने कहा था’ वाक़ई किसी और ने कहा था। आप क्या कहते हैं… कहने दिया जाए?

This post was published on February 20, 2023 7:20 pm

Mohd Badruzzama Siddiqui